ISRO full form | ISRO क्या हैं ? | ISRO के बारे में पूरी जानकारी

ISRO full form:-भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (संक्षेप में- इसरो) (अंग्रेज़ी: Indian Space Research Organisation, ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय बंगलौर में है। इस संस्थान में लगभग सत्रह हजार कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष सम्बधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है।

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की स्थापना 15 अगस्त 1969 में की गयी थी। तब इसका नाम ‘अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति’ (INCOSPAR) था।

भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट,19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। इसका नाम महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था । इसने 5 दिन बाद काम करना बन्द कर दिया था। लेकिन यह अपने आप में भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।

7 जून 1979 को भारत का दूसरा उपग्रह भास्कर जो 445 किलो का था, पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।

1980 में रोहिणी उपग्रह पहला भारत-निर्मित प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बन गया जिसे कक्षा में स्थापित किया गया।

इसरो ने बाद में दो अन्य रॉकेट विकसित किए। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान उपग्रहों शुरू करने के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी),भूस्थिर कक्षा में उपग्रहों को रखने के लिए ध्रुवीय कक्षाओं और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान। ये रॉकेट कई संचार उपग्रहों और पृथ्वी अवलोकन गगन और आईआरएनएसएस तरह सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम तैनात किया उपग्रह का शुभारंभ किया।

जनवरी 2014 में इसरो सफलतापूर्वक जीसैट -14 का एक जीएसएलवी-डी 5 प्रक्षेपण में एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया गया।

इसरो के वर्तमान निदेशक डॉ कैलासवटिवु शिवन् हैं। आज भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है।

इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 भेजा जिसने चन्द्रमा की परिक्रमा की। इसके बाद 24 सितम्बर 2014 को मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला मंगलयान (मंगल आर्बिटर मिशन) भेजा। सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया और इस प्रकार भारत अपने पहले ही प्रयास में सफल होने वाला पहला राष्ट्र बना।

दुनिया के साथ ही एशिया में पहली बार अंतरिक्ष एजेंसी में एजेंसी को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने के लिए इसरो चौथे स्थान पर रहा।

भविष्य की योजनाओं मे शामिल जीएसएलवी एमके III के विकास (भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए) ULV, एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, मानव अंतरिक्ष, आगे चंद्र अन्वेषण, ग्रहों के बीच जांच, एक सौर मिशन अंतरिक्ष यान के विकास आदि।

इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए साल 2014 के इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के लगभग एक वर्ष बाद इसने 29 सितंबर 2015 को एस्ट्रोसैट के रूप में भारत की पहली अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित किया।

जून 2016 तक इसरो लगभग 20 अलग-अलग देशों के 57 उपग्रहों को लॉन्च कर चुका है, और इसके द्वारा उसने अब तक 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर कमाए हैं।

जा रही है |

ISRO full form In Hindi – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

ISRO full form In English- Indian Space Research Organisation

उत्‍पत्ति

हमारे देश में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरूआत 1960 के दौरान हुई, जिस समय संयुक्‍त राष्‍ट्र  अमरीका में भी उपग्रहों का प्रयोग करने वाले अनुप्रयोग परीक्षणात्‍मक चरणों पर थे। अमरीकी उपग्रह ‘सिनकाम-3’ द्वारा प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में टोकियो ओलंपिक खेलों के सीधे प्रसारण ने संचार उपग्रहों की सक्षमता को प्रदर्शित किया, जिससे डॉ. विक्रम साराभाई, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक ने तत्‍काल भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लाभों को पहचाना।

डॉ. साराभाई यह मानते थे तथा उनकी यह दूर‍दर्शिता थी कि अंतरिक्ष के संसाधनों में इतना सामर्थ्‍य है कि वह मानव तथा समाज की वास्‍तविक समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं। अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पी.आर.एल.) के निदेशक के रूप में डॉ. साराभाई ने देश के सभी ओर से सक्षम तथा उत्‍कृष्‍ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, विचारकों तथा समाजविज्ञानियों को मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्‍व करने के लिए एक दल गठित किया।

अपनी शुरूआती दिनों से ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सुदृढ़ योजना रही तथा तीन विशिष्‍ट खंड जैसे संचार तथा सुदूर संवेदन के लिए उपग्रह, अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली तथा अनुप्रयोग कार्यक्रम को, इसमें शामिल किया गया। डॉ. साराभाई तथा डॉ. रामनाथन के नेतृत्‍व में इन्कोस्‍पार (भारतीय राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति) की शुरूआत हुई। 1967 में, अहमदाबाद स्थित पहले परीक्षणात्‍मक उपग्रह संचार भू-स्‍टेशन (ई.एस.ई.एस.) का प्रचालन किया गया, जिसने भारतीय तथा अंतर्राष्‍ट्रीय वैज्ञानिकों और अभियंताओं के लिए प्रशिक्षण केन्‍द्र के रूप में भी कार्य किया।

इस बात को सिद्ध करने के लिए कि उपग्रह प्रणाली राष्‍ट्रीय विकास में अपना योगदान दे सकती है, इसरो के समक्ष यह स्‍पष्‍ट धारणा थी कि अनुप्रयोग विकास की पहल में अपने स्‍वयं के उपग्रहों की प्रतीक्षा करने की आवश्‍यकता नहीं है। शुरूआती दिनों में, विदेशी उपग्रहों का प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि एक पूर्ण विकसित उपग्रह प्रणाली के परीक्षण से पहले, राष्‍ट्रीय विकास के लिए दूरदर्शन माध्‍यम की क्षमता को प्रमाणित करने के लिए कुछ नियंत्रित परीक्षणों को आवश्‍यक माना गया। तदनुसार, किसानों के लिए कृषि संबंधी सूचना देने हेतु टी.वी. कार्यक्रम ‘कृषि दर्शन’ की शुरूआत की गई, जिसकी अच्‍छी प्रतिक्रिया मिली।

अगला तर्कसंगत कदम था उपग्रह अनुदेशात्‍मक टेलीविजन परीक्षण (साइट), जो वर्ष 1975-76 के दौरान ‘विश्‍व में सबसे बड़े समाजशास्‍त्रीय परीक्षण’ के रूप में सामने आया। इस परीक्षण से छह राज्‍यों के 2400 ग्रामों के करीब 200,000 लोगों को लाभ पहुँचा तथा इससे अम‍रीकी प्रौद्योगिकी उपग्रह (ए.टी.एस.-6) का प्रयोग करते हुए विकास आधारित कार्यक्रमों का प्रसारण किया गया। एक वर्ष में प्राथमिक स्‍कूलों के 50,000 विज्ञान के अध्‍यापकों को प्रशिक्षित करने का श्रेय साइट को जाता है।

साइट के बाद, वर्ष 1977-79 के दौरान फ्रेंको-जर्मन सिमफोनी उपग्रह का प्रयोग करते हुए इसरो तथा डाक एवं तार विभाग (पी.एवं टी.) की एक संयुक्‍त परियोजना उपग्रह दूरसंचार परीक्षण परियोजना (स्‍टेप) की शुरूआत की गई। दूरदर्शन पर केन्द्रित साइट के क्रम में परिकल्पित स्‍टेप दूरसंचार परीक्षणों के लिए बनाया गया था। स्‍टेप का उद्देश्‍य था घरेलू संचार हेतु भूतुल्‍यकाली उपग्रहों का प्रयोग करते हुए प्रणाली जाँच प्रदान करना, विभिन्‍न भू खंड सुविधाओं के डिजाइन, उत्‍पादन, स्‍थापना, प्रचालन तथा रखरखाव में क्षमताओं तथा अनुभव को हासिल करना तथा देश के लिए प्रस्‍तावित प्रचालनात्‍मक घरेलू उपग्रह प्रणाली, इन्‍सैट के लिए आवश्‍यक स्‍वदेशी क्षमता का निर्माण करना।

साइट के बाद, ‘खेड़ा संचार परियोजना (के.सी.पी.)’ की शुरूआत हुई जिसने गुजरात राज्‍य के खेड़ा जिले में आवश्‍यकतानुसार तथा स्‍थानीय विशिष्‍ट कार्यक्रम प्रसारण के लिए क्षेत्र प्रयोगशाला के रूप में कार्य किया। के.सी.पी. को 1984 में कुशल ग्रामीण संचार सक्षमता के लिए यूनिस्‍को-आई.पी.डी.सी. (संचार के विकास के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय कार्यक्रम) पुरस्‍कार प्रदान किया गया।

इस अवधि के दौरान, भारत का प्रथम अंतरिक्षयान ‘आर्यभट्ट’ का विकास किया गया तथा सोवियत राकेट का प्रयोग करते हुए इसका प्रमोचन किया गया। दूसरी प्रमुख उपलब्धि थी निम्‍न भू कक्षा (एल.ई.ओ.) में 40 कि.ग्रा. को स्‍थापित करने की क्षमता वाले प्रथम प्रमोचक राकेट एस.एल.वी.-3 का विकास करना, जिसकी पहली सफल उड़ान 1980 में की गई। एस.एल.वी.-3 कार्यक्रम के माध्‍यम से संपूर्ण राकेट डिजाइन, मिशन डिजाइन, सामग्री, हार्डवेयर संविरचन, ठोस नोदन प्रौद्योगिकी, नियंत्रण ऊर्जा संयंत्र, उड्डयनकी, राकेट समेकन जाँच तथा प्रमोचन प्रचालन के लिए सक्षमता का निर्माण किया गया। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उपग्रह को कक्षा में स्‍थापित करने हेतु उपयुक्‍त नियंत्रण तथा मार्गदर्शन के साथ बहु-‍चरणीय राकेट प्रणालियों का विकास करना एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि थी।

80 के दशक के परीक्षणात्‍मक चरण में, प्रयोक्‍ताओं के लिए, सहयोगी भू प्रणालियों के साथ अंतरिक्ष प्रणालियों के डिजाइन, विकास तथा कक्षीय प्रबंधन में शुरू से अंत तक क्षमता प्रदर्शन किया गया। सुदूर संवेदन के क्षेत्र में भास्‍कर-। एवं ।। ठोस कदम थे जबकि भावी संचार उपग्रह प्रणाली के लिए ‘ऐरियन यात्री नीतभार परीक्षण (ऐप्‍पल) अग्रदूत बना। जटिल सं‍वर्धित उपग्रह प्रमोचक राकेट (ए.एस.एल.वी.) के विकास ने नई प्रौद्योगिकियों जैसे स्‍ट्रैप-ऑन, बलबस ताप कवच, बंद पाश मार्गदर्शिका तथा अंकीय स्‍वपायलट के प्रयोग को भी प्रदर्शित किया। इससे, जटिल मिशनों हेतु प्रमोचक राकेट डिजाइन की कई बारीकियों को जानने का मौका मिला, जिससे पी.एस.एल.वी. तथा जी.एस.एल.वी. जैसे प्रचालनात्‍मक प्रमोचक राकेटों का निर्माण किया जा सका।

90 के दशक के प्रचालनात्‍मक दौर के दौरान, दो व्‍यापक श्रेणियों के अंतर्गत प्रमुख अंतरिक्ष अवसंरचना का निर्माण किया गया: एक का प्रयोग बहु-उद्देश्‍यीय भारतीय राष्‍ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्‍सैट) के माध्‍यम से संचार, प्रसारण तथा मौसमविज्ञान के लिए किया गया, तथा दूसरे का भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आई.आर.एस.) प्रणाली के लिए। ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट (पी.एस.एल.वी.) तथा भूतुल्‍यकाली उपग्रह प्रमोचक राकेट (जी.एस.एल.वी.) का विकास तथा प्रचालन इस चरण की विशिष्‍ट उपलब्धियाँ थीं।

इसरो(ISRO) क्या है?

इसरो भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है, यह दुनिया के सबसे अग्रणी और कामयाब अंतरिक्ष अनुसन्धान  केंद्रों में से एक है।

इसरो भारत के लिए बहुत सारे अलग-अलग तरह के उन्नत सेटेलाइट बनाता है और उसे अंतरिक्ष में स्थापित करता है।

अलग-अलग तरह के सैटेलाइट जो इसरो बना चुका है, वह है ब्रॉडकास्ट कम्युनिकेश, वेदर फोरकास्ट, ज्योग्राफिक इनफॉरमेशन, डिस्टेंस एजुकेशन, टेलीमेडिसिन, कम्यूनिकेशन आदि है।

स्पेस टेक्नोलॉजी का यूज करके भारत को आगे ले जाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया यह है स्पेस संस्थान अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब है।

आज कम्युनिकेशन के क्षेत्र में भारत कई विकसित देशों से भी आगे निकल रहा है, इसके पीछे इसरो की ही कड़ी मेहनत है।

इसरो ने भारत की रक्षा टेक्नोलॉजी को भी बहुत आगे बढ़ाने और अपने पर निर्भर होने में बहुत मदद की है।

इसरो की कामयाबी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बहुत सारे विकसित देश अपना सैटेलाइट इसरो के माध्यम से स्पेस में स्थापित करवाते हैं।

इसरो (ISRO) का इतिहास

इसरो की स्थापना 15 अगस्त उन्नीस सौ 69 को हुई थी,

और उस समय जब भारत बहुत सारी कठिनाइयों का सामना कर रहा था, तब भी विक्रम साराभाई जैसे आगे की सोच रखने वाले बड़े वैज्ञानिक को इसकी स्थापना का श्रेय जाता है।

भारत ने अपना पहला सेटेलाइट 1975 में बनाया जिसे आर्यभट्ट नाम दिया गया ,लेकिन अपना खुद का लांच पैड सिस्टम ना होने के कारण, इसे सोवियत यूनियन के द्वारा स्पेस में स्थापित किया गया।

1980 में भारत ने अपने लांच पैड सिस्टम से रोहिणी नामक सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित किया, और दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत आने वाले समय में अंतरिक्ष में बहुत कुछ नया करने वाला है।

इसरो सैटेलाइट प्रोग्राम्स

इसरो के कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध स्पेस प्रोग्राम से निम्न है-

  • इनसैट सीरीज
  • आईआरएस सीरीज
  • राडार इमेजिंग सैटेलाइट
  • साउथ एशिया सैटेलाइट
  • गगन सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम
  • आईआरएनएसएस सैटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम

क्या नासा इसरो से बेहतर है?

इस बात की पुष्टि हम किसी एक पहलू से नहीं कर सकते हैं।

आपको जानकारी दे दे कि नासा एक अंतरिक्ष प्रशासन एजेंसी है, जबकि इसरो एक अनुसंधान एजेंसी मानी जाती है।

नासा बाहरी एजेंसियों से उपग्रहो और रॉकेट के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री खरीद कर सभी अंतरिक्ष परियोजनाओं का प्रबंधन करता है।

वही इसरो की बात करें तो वह अपने संगठन और इसकी सहायक संस्था में सभी के द्वारा रॉकेट और उपग्रह विकसित करता है।

वही दोनों संस्थानों की वार्षिक बजट  में भी काफी बड़ा अंतर है।

आपको बता दें कि नासा का वार्षिक बजट 1218.34 बिलियन डॉलर है, जबकि भारत के इसरो का बजट 90.94 बिलियन है जो की अनुमानित है।

नासा द्वारा किए गए  खोजो में से अधिकांश पूरी तरह से सफल रहे हैं, जबकि इसरो की बात करें तो इसरो द्वारा किए गए पहले लांच में से बहुत असफल भी  रहे थे।

इसरो जो तकनीक इस्तेमाल करता है उसकी तुलना में नासा की प्रौद्योगिकी अध्ययन मध्यमिक उन्नत है।

इसरो के सफल मिशन में chandrayaan-1, मंगल यान 1, पीएसएलवी c37, इत्यादि शामिल है।

वहीं नासा की उपलब्धियों के बात करें तो इसमें पाएनियर,बाय जैन और बाइकिग इत्यादि शामिल है।

तो हम कह सकते हैं कि नासा अंतरिक्ष की रेस में इसरो से थोड़ा आगे है

लेकिन इसरो जिस गति से आगे बढ़ रहा है, जल्द ही हम उम्मीद कर सकते हैं, कि इस रोज दुनिया की सबसे बड़ी और सफल अंतरिक्ष एजेंसी होगी।

इसरों का मुख्यालय (Headquarter)

इसरों का मुख्यालय कर्नाटक राज्य की राजधानी बंगलुरु (Bengaluru) में स्थापित है |

इसरों के कितने केंद्र (Centers) है ?

देश भर में इसरो के छ: प्रमुख केंद्र तथा कई अन्य इकाइयाँ, एजेंसी, सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित हैं | यह केंद्र इस प्रकार है- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) तिरुवनंतपुरम, इसरो उपग्रह केंद्र (आईएसएसी) बेंगलूर, सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी-शार) श्रीहरिकोटा, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) तिरुवनंतपुरम, बेंगलूर और महेंद्रगिरी में, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद में और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद में स्थित हैं |

इसरो का सफलता की कहानी

इसरो ने बहुत तरह की space program का मिशन किया है और इनमे से कुछ मिशन सफल नहीं हुआ है, लेकिन ज्यादातर मिशन में इसरो पूरी तरह से सफल हुआ है.

इसरो का सभी सफल मिशन में से कुछ मिशन बहुत ज्यादा विख्यात है जो मैं आपको निचे बताने वाला हो.

1. चंद्रयान-2 : इसरो ने 22 जुलाई 2019 में चंद्रयान-2 को launch किया है जो इसरो का सबसे बड़ी अन्तरिक्ष मिशन थी. यह मिशन में चंद्रयान-2 को चाँद पर भेजने के लिए इसरो ने अपना राकेट GSLV को इस्तेमाल किया है.

चंद्रयान-2 की मिशन पूरी तरह सफल हुआ है, लेकिन चंद्रयान-2 चाँद पर लैंड की समय सही तरह लैंड नहीं हो पाया जिससे चंद्रयान-2 की सफलता में थोड़ा कमी रह गयी.

2. आर्यभट्ट उपग्रह :  सन 1975 में इसरो ने पहली बार आर्यभट्ट उपग्रह को अन्तरिक्ष में छोड़ा था. उस समय इसरो के पास अपना राकेट नहीं था जिसकी कारण सोवियत रूस के राकेट की मदद से यह मिशन पूरा करना पड़ा.

3. चंद्रयान-1 :  2008 सन में इसरो ने चाँद की पानी और वातावरण के बारे में जानने के लिए चंद्रयान-1 को अन्तरिक्ष पर भेजा था. इस मिशन की मदद से इसरो ने दुनिया को बता पाया चाँद की पानी और वातावरण के बारे में.

4. मंगलयान : मैंने पहले आपको इस मिशन की बारे में बता दिया है. मंगलयान की मिशन में इसरो ने भारत को पहला देश बनाया है जिसने पहले की प्रयास में अपना यान मंगल ग्रह पर सफलता से छोड़ा था.

भारत का इसरो, नासा, यूरोप और रूस के space agencies के अलावा अब तक दुनिया का कोई भी देश मंगल ग्रह पर नहीं पहुंच पाया.

5. बाहुबली राकेट, GSLV :  इसरो ने अन्तरिक्ष अनुसंधान के लिए सबसे शक्तिशाली राकेट GSLV को सन 2014 में बना कर अन्तरिक्ष पर सफलता के साथ भेजा था.

यह राकेट उपग्रहों को अन्तरिक्ष पर भेजने के लिए बनाया गया है. चंद्रयान-2 को भी इस GSLV के मदद से ही चाँद पर भेजा था.

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ISRO full form | ISRO क्या हैं ? | ISRO के बारे में पूरी जानकारी

ISRO full form:-भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (संक्षेप में- इसरो) (अंग्रेज़ी: Indian Space Research Organisation, ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय बंगलौर में है। इस संस्थान में लगभग सत्रह हजार कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष सम्बधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है।

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की स्थापना 15 अगस्त 1969 में की गयी थी। तब इसका नाम ‘अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति’ (INCOSPAR) था।

भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट,19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। इसका नाम महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था । इसने 5 दिन बाद काम करना बन्द कर दिया था। लेकिन यह अपने आप में भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।

7 जून 1979 को भारत का दूसरा उपग्रह भास्कर जो 445 किलो का था, पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।

1980 में रोहिणी उपग्रह पहला भारत-निर्मित प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बन गया जिसे कक्षा में स्थापित किया गया।

इसरो ने बाद में दो अन्य रॉकेट विकसित किए। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान उपग्रहों शुरू करने के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी),भूस्थिर कक्षा में उपग्रहों को रखने के लिए ध्रुवीय कक्षाओं और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान। ये रॉकेट कई संचार उपग्रहों और पृथ्वी अवलोकन गगन और आईआरएनएसएस तरह सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम तैनात किया उपग्रह का शुभारंभ किया।

जनवरी 2014 में इसरो सफलतापूर्वक जीसैट -14 का एक जीएसएलवी-डी 5 प्रक्षेपण में एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया गया।

इसरो के वर्तमान निदेशक डॉ कैलासवटिवु शिवन् हैं। आज भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है।

इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 भेजा जिसने चन्द्रमा की परिक्रमा की। इसके बाद 24 सितम्बर 2014 को मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला मंगलयान (मंगल आर्बिटर मिशन) भेजा। सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया और इस प्रकार भारत अपने पहले ही प्रयास में सफल होने वाला पहला राष्ट्र बना।

दुनिया के साथ ही एशिया में पहली बार अंतरिक्ष एजेंसी में एजेंसी को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने के लिए इसरो चौथे स्थान पर रहा।

भविष्य की योजनाओं मे शामिल जीएसएलवी एमके III के विकास (भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए) ULV, एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, मानव अंतरिक्ष, आगे चंद्र अन्वेषण, ग्रहों के बीच जांच, एक सौर मिशन अंतरिक्ष यान के विकास आदि।

इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए साल 2014 के इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के लगभग एक वर्ष बाद इसने 29 सितंबर 2015 को एस्ट्रोसैट के रूप में भारत की पहली अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित किया।

जून 2016 तक इसरो लगभग 20 अलग-अलग देशों के 57 उपग्रहों को लॉन्च कर चुका है, और इसके द्वारा उसने अब तक 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर कमाए हैं।

जा रही है |

ISRO full form In Hindi – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

ISRO full form In English- Indian Space Research Organisation

उत्‍पत्ति

हमारे देश में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरूआत 1960 के दौरान हुई, जिस समय संयुक्‍त राष्‍ट्र  अमरीका में भी उपग्रहों का प्रयोग करने वाले अनुप्रयोग परीक्षणात्‍मक चरणों पर थे। अमरीकी उपग्रह ‘सिनकाम-3’ द्वारा प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में टोकियो ओलंपिक खेलों के सीधे प्रसारण ने संचार उपग्रहों की सक्षमता को प्रदर्शित किया, जिससे डॉ. विक्रम साराभाई, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक ने तत्‍काल भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लाभों को पहचाना।

डॉ. साराभाई यह मानते थे तथा उनकी यह दूर‍दर्शिता थी कि अंतरिक्ष के संसाधनों में इतना सामर्थ्‍य है कि वह मानव तथा समाज की वास्‍तविक समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं। अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पी.आर.एल.) के निदेशक के रूप में डॉ. साराभाई ने देश के सभी ओर से सक्षम तथा उत्‍कृष्‍ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, विचारकों तथा समाजविज्ञानियों को मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्‍व करने के लिए एक दल गठित किया।

अपनी शुरूआती दिनों से ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सुदृढ़ योजना रही तथा तीन विशिष्‍ट खंड जैसे संचार तथा सुदूर संवेदन के लिए उपग्रह, अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली तथा अनुप्रयोग कार्यक्रम को, इसमें शामिल किया गया। डॉ. साराभाई तथा डॉ. रामनाथन के नेतृत्‍व में इन्कोस्‍पार (भारतीय राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति) की शुरूआत हुई। 1967 में, अहमदाबाद स्थित पहले परीक्षणात्‍मक उपग्रह संचार भू-स्‍टेशन (ई.एस.ई.एस.) का प्रचालन किया गया, जिसने भारतीय तथा अंतर्राष्‍ट्रीय वैज्ञानिकों और अभियंताओं के लिए प्रशिक्षण केन्‍द्र के रूप में भी कार्य किया।

इस बात को सिद्ध करने के लिए कि उपग्रह प्रणाली राष्‍ट्रीय विकास में अपना योगदान दे सकती है, इसरो के समक्ष यह स्‍पष्‍ट धारणा थी कि अनुप्रयोग विकास की पहल में अपने स्‍वयं के उपग्रहों की प्रतीक्षा करने की आवश्‍यकता नहीं है। शुरूआती दिनों में, विदेशी उपग्रहों का प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि एक पूर्ण विकसित उपग्रह प्रणाली के परीक्षण से पहले, राष्‍ट्रीय विकास के लिए दूरदर्शन माध्‍यम की क्षमता को प्रमाणित करने के लिए कुछ नियंत्रित परीक्षणों को आवश्‍यक माना गया। तदनुसार, किसानों के लिए कृषि संबंधी सूचना देने हेतु टी.वी. कार्यक्रम ‘कृषि दर्शन’ की शुरूआत की गई, जिसकी अच्‍छी प्रतिक्रिया मिली।

अगला तर्कसंगत कदम था उपग्रह अनुदेशात्‍मक टेलीविजन परीक्षण (साइट), जो वर्ष 1975-76 के दौरान ‘विश्‍व में सबसे बड़े समाजशास्‍त्रीय परीक्षण’ के रूप में सामने आया। इस परीक्षण से छह राज्‍यों के 2400 ग्रामों के करीब 200,000 लोगों को लाभ पहुँचा तथा इससे अम‍रीकी प्रौद्योगिकी उपग्रह (ए.टी.एस.-6) का प्रयोग करते हुए विकास आधारित कार्यक्रमों का प्रसारण किया गया। एक वर्ष में प्राथमिक स्‍कूलों के 50,000 विज्ञान के अध्‍यापकों को प्रशिक्षित करने का श्रेय साइट को जाता है।

साइट के बाद, वर्ष 1977-79 के दौरान फ्रेंको-जर्मन सिमफोनी उपग्रह का प्रयोग करते हुए इसरो तथा डाक एवं तार विभाग (पी.एवं टी.) की एक संयुक्‍त परियोजना उपग्रह दूरसंचार परीक्षण परियोजना (स्‍टेप) की शुरूआत की गई। दूरदर्शन पर केन्द्रित साइट के क्रम में परिकल्पित स्‍टेप दूरसंचार परीक्षणों के लिए बनाया गया था। स्‍टेप का उद्देश्‍य था घरेलू संचार हेतु भूतुल्‍यकाली उपग्रहों का प्रयोग करते हुए प्रणाली जाँच प्रदान करना, विभिन्‍न भू खंड सुविधाओं के डिजाइन, उत्‍पादन, स्‍थापना, प्रचालन तथा रखरखाव में क्षमताओं तथा अनुभव को हासिल करना तथा देश के लिए प्रस्‍तावित प्रचालनात्‍मक घरेलू उपग्रह प्रणाली, इन्‍सैट के लिए आवश्‍यक स्‍वदेशी क्षमता का निर्माण करना।

साइट के बाद, ‘खेड़ा संचार परियोजना (के.सी.पी.)’ की शुरूआत हुई जिसने गुजरात राज्‍य के खेड़ा जिले में आवश्‍यकतानुसार तथा स्‍थानीय विशिष्‍ट कार्यक्रम प्रसारण के लिए क्षेत्र प्रयोगशाला के रूप में कार्य किया। के.सी.पी. को 1984 में कुशल ग्रामीण संचार सक्षमता के लिए यूनिस्‍को-आई.पी.डी.सी. (संचार के विकास के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय कार्यक्रम) पुरस्‍कार प्रदान किया गया।

इस अवधि के दौरान, भारत का प्रथम अंतरिक्षयान ‘आर्यभट्ट’ का विकास किया गया तथा सोवियत राकेट का प्रयोग करते हुए इसका प्रमोचन किया गया। दूसरी प्रमुख उपलब्धि थी निम्‍न भू कक्षा (एल.ई.ओ.) में 40 कि.ग्रा. को स्‍थापित करने की क्षमता वाले प्रथम प्रमोचक राकेट एस.एल.वी.-3 का विकास करना, जिसकी पहली सफल उड़ान 1980 में की गई। एस.एल.वी.-3 कार्यक्रम के माध्‍यम से संपूर्ण राकेट डिजाइन, मिशन डिजाइन, सामग्री, हार्डवेयर संविरचन, ठोस नोदन प्रौद्योगिकी, नियंत्रण ऊर्जा संयंत्र, उड्डयनकी, राकेट समेकन जाँच तथा प्रमोचन प्रचालन के लिए सक्षमता का निर्माण किया गया। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उपग्रह को कक्षा में स्‍थापित करने हेतु उपयुक्‍त नियंत्रण तथा मार्गदर्शन के साथ बहु-‍चरणीय राकेट प्रणालियों का विकास करना एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि थी।

80 के दशक के परीक्षणात्‍मक चरण में, प्रयोक्‍ताओं के लिए, सहयोगी भू प्रणालियों के साथ अंतरिक्ष प्रणालियों के डिजाइन, विकास तथा कक्षीय प्रबंधन में शुरू से अंत तक क्षमता प्रदर्शन किया गया। सुदूर संवेदन के क्षेत्र में भास्‍कर-। एवं ।। ठोस कदम थे जबकि भावी संचार उपग्रह प्रणाली के लिए ‘ऐरियन यात्री नीतभार परीक्षण (ऐप्‍पल) अग्रदूत बना। जटिल सं‍वर्धित उपग्रह प्रमोचक राकेट (ए.एस.एल.वी.) के विकास ने नई प्रौद्योगिकियों जैसे स्‍ट्रैप-ऑन, बलबस ताप कवच, बंद पाश मार्गदर्शिका तथा अंकीय स्‍वपायलट के प्रयोग को भी प्रदर्शित किया। इससे, जटिल मिशनों हेतु प्रमोचक राकेट डिजाइन की कई बारीकियों को जानने का मौका मिला, जिससे पी.एस.एल.वी. तथा जी.एस.एल.वी. जैसे प्रचालनात्‍मक प्रमोचक राकेटों का निर्माण किया जा सका।

90 के दशक के प्रचालनात्‍मक दौर के दौरान, दो व्‍यापक श्रेणियों के अंतर्गत प्रमुख अंतरिक्ष अवसंरचना का निर्माण किया गया: एक का प्रयोग बहु-उद्देश्‍यीय भारतीय राष्‍ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्‍सैट) के माध्‍यम से संचार, प्रसारण तथा मौसमविज्ञान के लिए किया गया, तथा दूसरे का भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आई.आर.एस.) प्रणाली के लिए। ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट (पी.एस.एल.वी.) तथा भूतुल्‍यकाली उपग्रह प्रमोचक राकेट (जी.एस.एल.वी.) का विकास तथा प्रचालन इस चरण की विशिष्‍ट उपलब्धियाँ थीं।

इसरो(ISRO) क्या है?

इसरो भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है, यह दुनिया के सबसे अग्रणी और कामयाब अंतरिक्ष अनुसन्धान  केंद्रों में से एक है।

इसरो भारत के लिए बहुत सारे अलग-अलग तरह के उन्नत सेटेलाइट बनाता है और उसे अंतरिक्ष में स्थापित करता है।

अलग-अलग तरह के सैटेलाइट जो इसरो बना चुका है, वह है ब्रॉडकास्ट कम्युनिकेश, वेदर फोरकास्ट, ज्योग्राफिक इनफॉरमेशन, डिस्टेंस एजुकेशन, टेलीमेडिसिन, कम्यूनिकेशन आदि है।

स्पेस टेक्नोलॉजी का यूज करके भारत को आगे ले जाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया यह है स्पेस संस्थान अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब है।

आज कम्युनिकेशन के क्षेत्र में भारत कई विकसित देशों से भी आगे निकल रहा है, इसके पीछे इसरो की ही कड़ी मेहनत है।

इसरो ने भारत की रक्षा टेक्नोलॉजी को भी बहुत आगे बढ़ाने और अपने पर निर्भर होने में बहुत मदद की है।

इसरो की कामयाबी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बहुत सारे विकसित देश अपना सैटेलाइट इसरो के माध्यम से स्पेस में स्थापित करवाते हैं।

इसरो (ISRO) का इतिहास

इसरो की स्थापना 15 अगस्त उन्नीस सौ 69 को हुई थी,

और उस समय जब भारत बहुत सारी कठिनाइयों का सामना कर रहा था, तब भी विक्रम साराभाई जैसे आगे की सोच रखने वाले बड़े वैज्ञानिक को इसकी स्थापना का श्रेय जाता है।

भारत ने अपना पहला सेटेलाइट 1975 में बनाया जिसे आर्यभट्ट नाम दिया गया ,लेकिन अपना खुद का लांच पैड सिस्टम ना होने के कारण, इसे सोवियत यूनियन के द्वारा स्पेस में स्थापित किया गया।

1980 में भारत ने अपने लांच पैड सिस्टम से रोहिणी नामक सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित किया, और दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत आने वाले समय में अंतरिक्ष में बहुत कुछ नया करने वाला है।

इसरो सैटेलाइट प्रोग्राम्स

इसरो के कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध स्पेस प्रोग्राम से निम्न है-

  • इनसैट सीरीज
  • आईआरएस सीरीज
  • राडार इमेजिंग सैटेलाइट
  • साउथ एशिया सैटेलाइट
  • गगन सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम
  • आईआरएनएसएस सैटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम

क्या नासा इसरो से बेहतर है?

इस बात की पुष्टि हम किसी एक पहलू से नहीं कर सकते हैं।

आपको जानकारी दे दे कि नासा एक अंतरिक्ष प्रशासन एजेंसी है, जबकि इसरो एक अनुसंधान एजेंसी मानी जाती है।

नासा बाहरी एजेंसियों से उपग्रहो और रॉकेट के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री खरीद कर सभी अंतरिक्ष परियोजनाओं का प्रबंधन करता है।

वही इसरो की बात करें तो वह अपने संगठन और इसकी सहायक संस्था में सभी के द्वारा रॉकेट और उपग्रह विकसित करता है।

वही दोनों संस्थानों की वार्षिक बजट  में भी काफी बड़ा अंतर है।

आपको बता दें कि नासा का वार्षिक बजट 1218.34 बिलियन डॉलर है, जबकि भारत के इसरो का बजट 90.94 बिलियन है जो की अनुमानित है।

नासा द्वारा किए गए  खोजो में से अधिकांश पूरी तरह से सफल रहे हैं, जबकि इसरो की बात करें तो इसरो द्वारा किए गए पहले लांच में से बहुत असफल भी  रहे थे।

इसरो जो तकनीक इस्तेमाल करता है उसकी तुलना में नासा की प्रौद्योगिकी अध्ययन मध्यमिक उन्नत है।

इसरो के सफल मिशन में chandrayaan-1, मंगल यान 1, पीएसएलवी c37, इत्यादि शामिल है।

वहीं नासा की उपलब्धियों के बात करें तो इसमें पाएनियर,बाय जैन और बाइकिग इत्यादि शामिल है।

तो हम कह सकते हैं कि नासा अंतरिक्ष की रेस में इसरो से थोड़ा आगे है

लेकिन इसरो जिस गति से आगे बढ़ रहा है, जल्द ही हम उम्मीद कर सकते हैं, कि इस रोज दुनिया की सबसे बड़ी और सफल अंतरिक्ष एजेंसी होगी।

इसरों का मुख्यालय (Headquarter)

इसरों का मुख्यालय कर्नाटक राज्य की राजधानी बंगलुरु (Bengaluru) में स्थापित है |

इसरों के कितने केंद्र (Centers) है ?

देश भर में इसरो के छ: प्रमुख केंद्र तथा कई अन्य इकाइयाँ, एजेंसी, सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित हैं | यह केंद्र इस प्रकार है- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) तिरुवनंतपुरम, इसरो उपग्रह केंद्र (आईएसएसी) बेंगलूर, सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी-शार) श्रीहरिकोटा, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) तिरुवनंतपुरम, बेंगलूर और महेंद्रगिरी में, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद में और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद में स्थित हैं |

इसरो का सफलता की कहानी

इसरो ने बहुत तरह की space program का मिशन किया है और इनमे से कुछ मिशन सफल नहीं हुआ है, लेकिन ज्यादातर मिशन में इसरो पूरी तरह से सफल हुआ है.

इसरो का सभी सफल मिशन में से कुछ मिशन बहुत ज्यादा विख्यात है जो मैं आपको निचे बताने वाला हो.

1. चंद्रयान-2 : इसरो ने 22 जुलाई 2019 में चंद्रयान-2 को launch किया है जो इसरो का सबसे बड़ी अन्तरिक्ष मिशन थी. यह मिशन में चंद्रयान-2 को चाँद पर भेजने के लिए इसरो ने अपना राकेट GSLV को इस्तेमाल किया है.

चंद्रयान-2 की मिशन पूरी तरह सफल हुआ है, लेकिन चंद्रयान-2 चाँद पर लैंड की समय सही तरह लैंड नहीं हो पाया जिससे चंद्रयान-2 की सफलता में थोड़ा कमी रह गयी.

2. आर्यभट्ट उपग्रह :  सन 1975 में इसरो ने पहली बार आर्यभट्ट उपग्रह को अन्तरिक्ष में छोड़ा था. उस समय इसरो के पास अपना राकेट नहीं था जिसकी कारण सोवियत रूस के राकेट की मदद से यह मिशन पूरा करना पड़ा.

3. चंद्रयान-1 :  2008 सन में इसरो ने चाँद की पानी और वातावरण के बारे में जानने के लिए चंद्रयान-1 को अन्तरिक्ष पर भेजा था. इस मिशन की मदद से इसरो ने दुनिया को बता पाया चाँद की पानी और वातावरण के बारे में.

4. मंगलयान : मैंने पहले आपको इस मिशन की बारे में बता दिया है. मंगलयान की मिशन में इसरो ने भारत को पहला देश बनाया है जिसने पहले की प्रयास में अपना यान मंगल ग्रह पर सफलता से छोड़ा था.

भारत का इसरो, नासा, यूरोप और रूस के space agencies के अलावा अब तक दुनिया का कोई भी देश मंगल ग्रह पर नहीं पहुंच पाया.

5. बाहुबली राकेट, GSLV :  इसरो ने अन्तरिक्ष अनुसंधान के लिए सबसे शक्तिशाली राकेट GSLV को सन 2014 में बना कर अन्तरिक्ष पर सफलता के साथ भेजा था.

यह राकेट उपग्रहों को अन्तरिक्ष पर भेजने के लिए बनाया गया है. चंद्रयान-2 को भी इस GSLV के मदद से ही चाँद पर भेजा था.

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